चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-दो
#चिट्ठी_तुम्हारे_लिए [भाग-दो] हे भाग्यशनि! जेठ की दुपहरी में, शीतल शरबत के समान, ढेर सारे प्यार के साथ यह दूसरी चिट्ठी लिख रहा हूँ। अब लगता है कि सालों पहले ही अंतिम बार बातें हुई थी। समय का कुछ अंदाजा ही नहीं है कि कितने मुद्दतों पहले शुरू हुई बातें कितने अरसों पहले ही खत्म हो गईं। हाँ वाकया सारा का सारा याद है, अक्षरशः। क्योंकि खत्म तो बातें हुई थी, रिश्ते इतनी भी जल्दी खत्म नहीं हो सकते। बातों की बातें चली हैं तो बताता चलूँ कि तुम जो शिकायतें किया करती थी कि मैं मिलता क्यों नहीं हूँ तो मैं कहा करता था न कि समाज की पाबंदी है। लेकिन अब तो इस कोरोना के चलते पुलिस के डंडे, बीमारी का डर और तबाही का अंदेशा भी है। प्रेम को पूजने वाले इस देश में प्रेम करना तो सभी चाहते हैं लेकिन करने देना कोई नहीं चाहता है। सुना है कि तुम्हारी शादी की भी बात चल रही है! अब झूठ हो या सच। लेकिन एक बात...