चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-दो
[भाग-दो]
हे भाग्यशनि!
जेठ की दुपहरी में, शीतल शरबत के समान, ढेर सारे प्यार के साथ यह दूसरी चिट्ठी लिख रहा हूँ। अब लगता है कि सालों पहले ही अंतिम बार बातें हुई थी। समय का कुछ अंदाजा ही नहीं है कि कितने मुद्दतों पहले शुरू हुई बातें कितने अरसों पहले ही खत्म हो गईं। हाँ वाकया सारा का सारा याद है, अक्षरशः। क्योंकि खत्म तो बातें हुई थी, रिश्ते इतनी भी जल्दी खत्म नहीं हो सकते। बातों की बातें चली हैं तो बताता चलूँ कि तुम जो शिकायतें किया करती थी कि मैं मिलता क्यों नहीं हूँ तो मैं कहा करता था न कि समाज की पाबंदी है। लेकिन अब तो इस कोरोना के चलते पुलिस के डंडे, बीमारी का डर और तबाही का अंदेशा भी है। प्रेम को पूजने वाले इस देश में प्रेम करना तो सभी चाहते हैं लेकिन करने देना कोई नहीं चाहता है। सुना है कि तुम्हारी शादी की भी बात चल रही है! अब झूठ हो या सच। लेकिन एक बात तो है कि हिन्दुस्तानी लड़कियों के नामुराद बापों को शादियों से इतनी ज्यादा रफाकत होती है जैसे किसी धान का बोझा उठाए मजदूर को उसे गंतव्य पर उतार फेंकने से होती है। जब बोझ ही समझना होता है तो पैदा क्यों करते हैं! बीस-बाइस साल की लड़कियों को बिना उनकी मर्जी जाने बाँध देते हैं, किसी तीस साल के नौकरी वाले गदहे से। पता नहीं किस पाप की सजा में ऐसे बाप मिला करते हैं! अपने बाप के बारे में ऐसा सुनकर गुस्साए बिना, ठण्डे दिमाग से सोचकर देखना कि मैंने गलत ही क्या कहा।
पहले बगीचों में बैठे हुए जब आम की खुशबू नाक में आती थी तो ऐहसास होता था कि तुम्हारी साँसें ही हैं। उन पके हुए मालदह को जब अपने होठों से लगाता था, लगता कि जैसे तुम्हारी ही हथेलियाँ चूम रहा हूँ (नोट- हथेलियों के जगह पर कुछ और मत समझना 😊)। लेकिन इस बार आम का मौसम तो आया लेकिन आम नहीं आए। और जो थोड़े बहुत आए भी थे उन्हें रोज वायुदेव समेट ले जा रहे हैं, अपनी प्रेयसी के लिए। शाहरूख खान का एक डायलॉग था, "अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है।" मेरे साथ इसका ठीक उल्टा हुआ, मुलाकातें नदारद, बातें बंद और इस बार आम के बहाने यादों पर भी सर्जिकल स्ट्राइक किया है ऊपरवाले ने। लेकिन एक बात तुम भी जान लो और भगवान भी जान लें, मैं तुम्हारे जेहन से कितना भी दूर क्यों न चला जाऊँ लेकिन तुम्हें अपने दिल से दूर इतनी भी आसानी से नहीं होने दूँगा। एक ऐसा भी मोड़ आता है जहाँ किसी से प्यार करने के लिए उसकी भी जरूरत नहीं होती है।
जेठ की दुपहरी में, शीतल शरबत के समान, ढेर सारे प्यार के साथ यह दूसरी चिट्ठी लिख रहा हूँ। अब लगता है कि सालों पहले ही अंतिम बार बातें हुई थी। समय का कुछ अंदाजा ही नहीं है कि कितने मुद्दतों पहले शुरू हुई बातें कितने अरसों पहले ही खत्म हो गईं। हाँ वाकया सारा का सारा याद है, अक्षरशः। क्योंकि खत्म तो बातें हुई थी, रिश्ते इतनी भी जल्दी खत्म नहीं हो सकते। बातों की बातें चली हैं तो बताता चलूँ कि तुम जो शिकायतें किया करती थी कि मैं मिलता क्यों नहीं हूँ तो मैं कहा करता था न कि समाज की पाबंदी है। लेकिन अब तो इस कोरोना के चलते पुलिस के डंडे, बीमारी का डर और तबाही का अंदेशा भी है। प्रेम को पूजने वाले इस देश में प्रेम करना तो सभी चाहते हैं लेकिन करने देना कोई नहीं चाहता है। सुना है कि तुम्हारी शादी की भी बात चल रही है! अब झूठ हो या सच। लेकिन एक बात तो है कि हिन्दुस्तानी लड़कियों के नामुराद बापों को शादियों से इतनी ज्यादा रफाकत होती है जैसे किसी धान का बोझा उठाए मजदूर को उसे गंतव्य पर उतार फेंकने से होती है। जब बोझ ही समझना होता है तो पैदा क्यों करते हैं! बीस-बाइस साल की लड़कियों को बिना उनकी मर्जी जाने बाँध देते हैं, किसी तीस साल के नौकरी वाले गदहे से। पता नहीं किस पाप की सजा में ऐसे बाप मिला करते हैं! अपने बाप के बारे में ऐसा सुनकर गुस्साए बिना, ठण्डे दिमाग से सोचकर देखना कि मैंने गलत ही क्या कहा।
पहले बगीचों में बैठे हुए जब आम की खुशबू नाक में आती थी तो ऐहसास होता था कि तुम्हारी साँसें ही हैं। उन पके हुए मालदह को जब अपने होठों से लगाता था, लगता कि जैसे तुम्हारी ही हथेलियाँ चूम रहा हूँ (नोट- हथेलियों के जगह पर कुछ और मत समझना 😊)। लेकिन इस बार आम का मौसम तो आया लेकिन आम नहीं आए। और जो थोड़े बहुत आए भी थे उन्हें रोज वायुदेव समेट ले जा रहे हैं, अपनी प्रेयसी के लिए। शाहरूख खान का एक डायलॉग था, "अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है।" मेरे साथ इसका ठीक उल्टा हुआ, मुलाकातें नदारद, बातें बंद और इस बार आम के बहाने यादों पर भी सर्जिकल स्ट्राइक किया है ऊपरवाले ने। लेकिन एक बात तुम भी जान लो और भगवान भी जान लें, मैं तुम्हारे जेहन से कितना भी दूर क्यों न चला जाऊँ लेकिन तुम्हें अपने दिल से दूर इतनी भी आसानी से नहीं होने दूँगा। एक ऐसा भी मोड़ आता है जहाँ किसी से प्यार करने के लिए उसकी भी जरूरत नहीं होती है।
"दीदार तेरा मुमकिन नहीं तो क्या!
तसव्वुर के सहारे जिन्दगी काट लेंगे।"
तसव्वुर के सहारे जिन्दगी काट लेंगे।"
खैर काफी कुछ लिख दिया है। इतना पढ़ पाने का समय भी तो नहीं ही होगा तुम्हारे पास! कोरोना के कारण सावधानी बरतना, बौखने मत निकल जाया करना और सबसे महत्वपूर्ण बात, अपना ख्याल रखना।
.......क्रमशः
[नोट:- सारी बातें पूर्णतः काल्पनिक हैं। मैं अभी भी अखण्ड सिंगल हूँ ]
.......क्रमशः
[नोट:- सारी बातें पूर्णतः काल्पनिक हैं। मैं अभी भी अखण्ड सिंगल हूँ ]
By:- शिवेश आनन्द
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