बदन पे सितारे लपेटे हुए


#बातें_गीतों_की
गीत:- बदन पे सितारे लपेटे हुए,
गीतकार:- हसरत जयपुरी उर्फ इकबाल अहमद,
संगीतकार:- शंकर-जयकिशन,
गायक:- मोहम्मद रफी,
फिल्म:- प्रिंस (1969)
अभिनय:- शमशेर राज कपूर एवं वैजयंतीमाला,

             विज्ञान एवं मानव तो सितारों के ईर्दगिर्द भी नहीं पहुँच सके हैं किन्तु एक कवि ही उन सितारों को, अपनी स्याही में घोलकर, वस्त्रों में मोतियों की भाँति जड़ कर नायिका को पहना सकते हैं। हसरत साहब इस गीत से प्रिंस फिल्म में वही कारनामा कर दिखाया। जिसमें उनका साथ निभाने में शंकर-जयकिशन, रफी साहब और शम्मी साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जहाँ राजकुमार शमशेर (शम्मी कपूर), राजकुमारी अमृता (वैजयंतीमाला) को, अपने जन्मदिवस पर आयोजित पार्टी में गाते हुए रिझाने का प्रयास करते है।

              "बदन पे सितारे लपेटे हुए,
       ओ जान-ए-तमन्ना किधर जा रही हो!
         जरा पास आओ तो चैन आ जाए,
          जरा पास आओ तो चैन आ जाए।"

P.c.- youtube


गीत शुरू होने से ठीक पहले राजकुमार, राजकुमारी को नृत्य निवेदन करते हुए, जिस तरह गर्दन झटकते हैं, मुझे अकस्मात ही देव आनन्द साहब की याद आ गई। अब पता नहीं कि शुरूआत गर्दन झटकने की किसने की! देव साहब या फिर शम्मी साहब या फिर किन्हीं और ने?
               प्रेम निवेदन हेतु साहित्य की डोर थामकर, प्रिय की यशगान की परंपरा बड़ी ही पुरातन रही है और इसी क्रम में एक और उपस्थिति दर्ज कराई है इस गीत ने।
               हसरत साहब आगे लिखते हैं-

          "हम्हीं जब न होंगे तो ऐ दिलरूबा, 
             किसे देखकर हाय शरमाओगी!
            न देखोगी फिर तुम कभी आईना,
              हमारे बिना रोज घबराओगी।"



रफी साहब के गले की कारीगरी और वैजयंतीमाला की आँखें, हसरत जयपुरी के शब्दों को और अधिक सुंदर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं।

P.c.- wikipedia


         "है बनने सँवरने का जब ही मजा,
         कोई देखने वाला आशिक तो हो।
         नहीं तो ये जलवे हैं किस काम के!
       कोई मिटने वाला इक आशिक तो हो।"

इन पंक्तियों पर हालांकि नारीवादी नारियाँ आंदोलन कर सकती हैं कि देखने वालों के लिए ही क्यों हम तो अपने लिये सँवरेंगे। उनकी बातों पर ध्यान न देकर आप तो बस इश्क करिए, अगली पंक्ति से।

             "मुहब्बत कि ये इंतहा हो गई,
         कि मस्ती में तुमको खुदा कह गया।                             जमाना ये इंसाफ करता रहे,
            बुरा कह गया या भला कह गया।"

               आप भी बस मोहब्बत ही करते रहिए इस गीत से, गीतकार के साहित्य, संगीतकार के संगीत से, गायक के स्वरों से, शम्मी साहब की अदाओं से वैजयंतीमाला की नजरों से। भला-बुरा की समझ जमाने को करने दीजिए।
                                       By:-  शिवेश आनन्द

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