भारत के बहादुर लाल "शास्त्रीजी"
भारत के बहादुर लाल "शास्त्रीजी"
दो अक्तूबर का दिन भारत के इतिहास के अतिविशिष्ट गौरवशाली दिनों में से एक है। इस दिन ही आधुनिक भारत के इतिहास एवं राजनीति के दो अमूल्य रत्नों का जन्म हुआ था, महात्मा गांधी तथा लाल बहादुर शास्त्रीजी। कुछ लोग अच्छा भी कहते हैं वहीं कुछ लोग बुरा भी कहते हैं। बुरा बोलने वाले की गिरेबान पकड़ने वाले भी बहुत आ जाते हैं। और तो और जिस पार्टी के प्रमुख नेता एवं अधिकतर कार्यकर्ता प्रबल विरोध करते हैं, उस पार्टी के सुप्रीमो एवं राष्ट्रीय प्रतिनिधियों को भी न चाहते हुए भी शीश नवाना पड़ता है। इस तरह अपनी हत्या के सात दशक बाद भी गांधीजी प्रासंगिक हैं। वहीं आधुनिक भारत के आर्थिक सुधार की नींव रखने वाले शास्त्रीजी अपने आकस्मिक मृत्यु/प्रायोजित हत्या या रहस्यमयी देहांत के पाँच दशकों में ही प्रसंग में भी नहीं हैं।
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Pc:- Amar Ujala |
★अधिकारिक जीवनी(संक्षेप में):
02 अक्टूबर 1904 को, अपने नाना के घर, मुगलसराय में जन्मे शास्त्रीजी अपने माता-पिता श्रीमती रामदुलारी देवी एवं श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव की द्वितीय संतान एवं ज्येष्ठ पुत्र थे। इनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा, अपनी बहनों के साथ ननिहाल में ही हुई। किशोरावस्था से ही वह सामाजिक कार्यों में अभिरुचि रखते थे। लगभग सोलह वर्ष की आयु में वह गांधीजी के सत्याग्रह का हिस्सा बने। जाति-व्यवस्था को नहीं मानने वाले शास्त्रीजी ने बचपन में ही अपने नाम में श्रीवास्तव नहीं लगाया था। वह चंद उन महान विभूतियों में से थे, जिनके केवल कथन ही नहीं अपितु संपूर्ण जीवन अनुकरणीय था। पूरी तरह सादा-जीवन, सादे-व्यक्तित्व एवं सुलझे-विचारों वाले 'शास्त्रीजी' स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री बनने के पहले ये बाहरी मामलों के मंत्री, घरेलु मामलों के मंत्री एवं रेलमंत्री भी रह चुके थे।
पाकिस्तान से युद्ध में विजय, नाभिकीय कार्यक्रमों का आरंभ, हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति का प्रतिपादन इत्यादि एक प्रधानमंत्री के रूप में, अठारह महीने के छोटे से कार्यकाल में इनकी उपलब्धियाँ थी। वो दौर था अमेरिका और रूस के मध्य चल रहे शीत-युद्ध का। प्रायः सभी देशों ने अपने खेमे का चुनाव कर लिया था लेकिन नेहरू जी ने तय किया था हमारी नीति गुट-निरपेक्ष होगी। भारत शास्त्रीजी के भी शासन इसी नीति का पालन कर रहा था। ये निडर, निर्भिक एवं ईमानदार नेता थे। इनके रहते किसी भी बाहरी ताकतों का यहाँ आकर राज चलाना संभव नहीं था।
युद्ध में भारत के विजय के पश्चात रूस ने अपनी मध्यस्थता में अपनी दादागिरी सिद्ध करने के लिए "ताशकंद समझौता" करवाया। यह समझौता एक ऐसा मनहूसियत भरा समझौता था कि इसने भारत से बहुत कुछ छीन लिया। दस जनवरी को काफी गहमागहमी एवं तनाव भरे माहौल में इस समझौते पर दोनों पक्षों का हस्ताक्षर हुआ। उसी रात वह अपने रूम लौटे। वहाँ अपने परिवार के लोगों से फोन पर बातें की। फिर साढ़े बारह बजे के करीब सोने बिस्तर पर गए। 1:20 बजे शास्त्रीजी के चिकित्सक डॉ• आर• एन• चुग को यह कहकर बुलाया गया कि शास्त्रीजी की तबीयत बिगड़ गई है। डॉ• चुग तुरंत आए। शास्त्रीजी अपने बिस्तर पर बैठकर खाँस रहे थे और साँस रूकने की शिकायत कर रहे थे। चुग ने उन्हें लिटा कर इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। अगले तीन-चार मिनट में वे अपनी चेतना खोने लगे, नाड़ी, धड़कन सब बंद हो गई। 11 जनवरी 1:32AM में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उसके बाद रूसी डॉक्टरों की टीम आई, उन्होंने भी मृत घोषित किया और दो रिपोर्ट बनाए। एक भारत सरकार को सौंपा गया और दूसरा रूसी सरकार को। 11 जनवरी को ही दोपहर में पालम एयरपोर्ट पर उनका पार्थिव शरीर पहुँचा। उनका दाह-संस्कार यमुना के किनारे किया गया, जिसे बाद में 'विजय स्थल' कहा गया और यह 'शांति वन' से निकट ही है।
★प्राकृतिक मृत्यु पर संदेह के कारण:
◆चेहरा काला पड़ जाना
◆शरीर का बुरी फूल जाना
◆आँखों के पास के सफेद धब्बे
◆शरीर पर कटे हुए निशान एवं गर्दन के पीछे छेद
◆कपड़ों पर खून के धब्बे होना
फौरेंसिक विशेषज्ञों की मानें तो शरीर का काला पड़ जाना, शरीर बुरी तरह फूल जाना, आँखों के पास के सफेद इत्यादि या तो सर्पदंश या फिर विष (जो मस्तिष्क को क्षति पहुँचाए) के लक्षण हैं। चूँकि जनवरी में रूस का तापमान शून्य से नीचे होता है और भारत में भी सर्दी चरम पर होती है तो पालम एयरपोर्ट पहुँची पार्थिव शरीर (जिसे कि बमुश्किल छह-सात घंटे लगे होंगे भारत पहुँचने में) का फूल जाना संदेहास्पद है। यह तभी संभव है जबकि मृत्यु प्राकृतिक नहीं हुई हो। संसदीय कार्यवाही के अनुसार, तत्कालीन सोवियत सरकार ने पोस्टमार्टम करवाने का अनुरोध भारतीय गृहमंत्री एवं विदेशमंत्री से किया था। लेकिन इन्होंने कहा कि हमें कोई संदेह नहीं है तो पोस्टमार्टम क्यों करवाएँ। जबकि रूसी एजेंसी KGB ने, रूसी बटलर अहमद सतारोव, भारतीय राजदूत के रसोईए जान मुहम्मद एवं उसके साथियों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की थी क्योंकि उन्हें संदेह था शास्त्रीजी को विष दिया गया था।
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Pc:- Google |
शरीर पर कटे हुए निशान एवं कपड़ों पर लगे खून के धब्बों के बारें में कुछ लोग बताते हैं कि KGB उस समय लोगों को मारकर उनके अंदरूनी अंग निकाल लेती थी जिससे कि मृत्यु के सही कारणों का पता न चले। क्योंकि उस दौर में अमेरिकी एवं रूसी शीत युद्ध के दौरान राजनेताओं की हत्या आम बात थी। और शास्त्रीजी की हत्या के बाद हुई उथल-पुथल के बीच रूस को आसान-सा अवसर प्राप्त हो जाता भारत को जकड़ने का। अगर पूरे घटनाक्रम को विस्तार से देखें तो यह शक और भी गहरा होने लगता है कि KGB ने ही कुछ अन्य भारतीय नेताओं के साथ मिलकर हत्या करवायी थी। जहाँ शास्त्रीजी को ठहाराया जाना था उसे एक भारतीय DIG ने बदलकर एक अन्य चिकित्सकीय सुविधाओं से लैस होटल का प्रबंध किया था। फिर अंतिम क्षणों में मॉस्को से भारत के उच्चाधिकारी आए और आनन-फानन में उसे भी बदलकर प्रबंध एक बंगले में करवा दिया तथा उनके निजी सहायकों का प्रबंध वहाँ से दो सौ से ढ़ाई सौ मीटर दूर किया गया था। मृत्यु की रात को उनका खाना उनके अपने रसोईए ने नहीं वरन् भारतीय राजदूत टी• एन• कौल के रसोईए जान मुहम्मद ने बनाया था। वह राजदूत इंदिरा गांधी के करीबी थे और शास्त्रीजी की मृत्यु के बाद विदेश सचिव बना दिये गए और फिर अमरीकी राजदूत बनाए गए। आगे राजीव गांधी की सरकार में फिर से रूस में राजदूत बना दिये गए। KGB के आर्काइव्स डायरेक्टर वसीली नीकीटिच मित्रोखीन की माने तो इंदिरा गांधी, कई और राजनेता, सुरक्षा अधिकारी, बुद्धिजीवी तथा मीडिया भी KGB के वेतन भत्ते पर काम करती थी। यह सब शास्त्रीजी के रास्ते से हट जाने के बाद ही संभव था। इंदिरा गांधी के कई सहयोगी भी यह बात मानते थे कि वह शास्त्रीजी को प्रधानमंत्री बनाए जाने से नाराज थी। मित्रोखीन ने रिटायरमेंट के बाद बहुत सारे गोपनीय दस्तावेज ब्रिटेन को सौंपा था। जिनके आधार पर एक किताब छपी थी The Mitrokhin Archive इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर ब्रिटेन और इटली में मित्रोखीन आयोग का गठन हुआ और कई हुक्मरानों, बुद्धिजीवियों का पर्दाफाश हुआ। लेकिन वही किताब जब भारत लाई गई तो सरकार ने इसे कचड़े के डब्बे में फेंक दिया।
कुछ लोग CIA को भी इस हत्या का दोषी मानते हैं। क्योंकि एक किताब 'कंवर्सेशन विद द क्रू' जिसमें CIA के उच्चाधिकारी रॉबर्ट क्राउली ने ग्रेगरी डगलस को दिए गए साक्षात्कार में कहा था, "We knocked up Bhabha and nailed Shastri as well another cow-loving, rag head, stupid leader."
भाभा अमेरिका से विमान से लौटने वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से मारे गए थे। अमेरिका को यकीन था कि भाभा की सहायता से शास्त्रीजी की सरकार परमाणु शक्ति बनने के करीब पहुँच गई थी। इसलिए दोनों को रास्ते से हटा दिया गया। लेकिन इस अंदेशे को अफवाह मानते हुए कुछ यह भी कहते हैं रॉबर्ट क्राउली तब सेवानिवृत्त हो चुके थे और पहचान पाने के लिए, सुर्खियों में आने के लिए उन्होंने ऐसा कहा था।
और भी कुछ बातें हैं जो उनकी मौत को संदेहास्पद बनाती हैं,
1. हमेशा उनके साथ रहने वाली लाल डायरी का गायब होना।
2. मृत्यु के क्षणों में शास्त्रीजी का उस गिरे हुए थर्मस की ओर इशारा करना, जिसमें उस रात उन्हें दूध या पानी दिया गया था। उस थर्मस के द्रव का कोई फौरेंसिक टेस्ट नहीं होना और उस थर्मस का गायब हो जाना।
3. उनके डॉक्टर चुग तथा सहायक रामनाथ की भी कार दुर्घटना में मौत हो जाना। दोनों के प्रमुख गवाह होते हुए भी उनकी मृत्यु पर जरा भी संदेह न करते हुए कोई जाँच नहीं करवाना।
4. सोवियत सरकार द्वारा पोस्टमार्टम का आग्रह करने के बाद भी पोस्टमार्टम नहीं करवाना।
5. दोनों सरकारों को दिए गए रिपोर्टों में दो बातें लिखा होना, भारतीय रिपोर्ट (जिसमें यह निश्चितता से कही गई है कि मौत का कारण हृदयाघात ही है) उस पर दो रूसी डॉक्टर का हस्ताक्षर नहीं होना। वहीं रूसी सरकार को दिए गए रिपोर्ट में इस बात की संभावना जताना कि हृदयाघात ही मृत्यु का कारण हो सकता है इस पर सभी डॉक्टर के हस्ताक्षर होना।
6. एक रिपोर्ट में कैल्शियम क्लोराइड दिये जाने का जिक्र वहीं दूसरे में पोटाशियम क्लोराइड का।
7. हस्ताक्षर नहीं करने वाले में से एक डॉक्टर ई• जी• येरेनमेनको, जोकि रूसी डॉक्टर की टीम सबसे पहले पहुँची थी और वरिष्ठ भी थीं, ने कहा था कि हम उन्हें तभी बचा सकते थे जबकि उन्हें हृदयाघात हुआ होता। शायद इसी कारण उन्होंने भारतीय रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किया था।
8. जब उनकी धड़कने धीमी थी तब भी उन्हें इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया जाना क्योंकि उनके शरीर को दवाई तुरंत चाहिए थी इसलिए उन्हें इंट्रा-वेनस इंजेक्शन दिया जाना चाहिए था।
9. हृदय के मरीज को ऑक्सीजन देना जरूरी होता है जबकि उन्हे ऑक्सीजन दिया गया था इस बात का जिक्र रिपोर्ट में नहीं है।
उनकी मौत से कुछ बातें भी दबी भी रह गईं। कुछ लोग यह भी मानते थे कि उनकी ताशकंद में सुभाष चन्द्र बोस साहब से गुप्त मुलाकात हुई थी, उसके बाद बोस अयोध्या में आकर गुमनामी बाबा बनकर रहे थे। और भी कुछ गोपनीय बातों का पर्दाफाश होता। लेकिन उनका जीवन जितना सरल था मृत्यु उतनी ही जटिल बनकर रह गई और पूरी शासन-व्यवस्था मटियामेट करने में जुट गई। अगर उनकी मृत्यु नहीं हुई होती तो लंबे समय तक उन्हें प्रधानमंत्री पद से कोई हटा भी नहीं पाता। अब यह हाल है कि बहुत कम लोगों के ही ध्यान में यह बात रह पाती है कि 2 अक्तूबर को गांधीजी ही नहीं वरन् शास्त्रीजी का भी जन्म हुआ था। शास्त्रीजी की मृत्यु दो बार हुई। दूसरी बार उन्हें सिलसिलेवार एवं सुनियोजित ढंग से स्मृति में भी मार दिया गया। कोई सटीक नहीं बता पा रहा है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई थी लेकिन यह तो निश्चित है सरकार ने उनकी मृत्यु/हत्या के मामले को बड़ी शिद्दत से दबाते आ रही है। शास्त्रीजी आप तो हमें बेहतर कल देने के लिए तत्पर थे काश कि हम आपको बेहतर आज दे सकते।
[ Note:- इस लेख में दी गई जानकारियाँ उपलब्ध पाठ्य, श्रव्य तथा द्रश्य स्रोतों से उद्धृत हैं ]
By:- शिवेश आनन्द
बहुत अच्छा शिवेश
ReplyDeleteधन्यवाद रजनीश भैया
Deleteअच्छा लिखे हो, सच्चाई झलकती है तुम्हारे लेख में
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteBohot achha... Kuchh rah gye Sachchhai se rubaroo karane k liye shukariya... Behtar lekhan saili, data, shabdo ka chayan sabkuchh mn ko moh leta h...
ReplyDeleteFabulous... Keep it up 👍