सांगठनिक जीवन
★सांगठनिक जीवन★
आप और हम एक सभ्य समाज के बाशिंदे हैं। सभ्यता एवं संस्कार हमारी पहचान है। हम कुछ कार्य कर रहे हों अथवा आप कुछ कार्य कर रहे हों, गलती होने की गुंजाइश होती है। एक संगठन कुछ विशेष नहीं वरन् समाज का ही प्रतिबिंब होता है। जैसे समाज में अच्छे लोग भी हैं और बुरे लोग भी हैं, ठीक उसी तरह किसी संगठन में भी कुछ बुरे लोग अवश्य होते हैं। आवश्यक नहीं है कि वह बुरे खुले में अपनी बुराईयाँ मुँह पर चिपकाए घूमते रहें और न ही एक सामाजिक संगठन RAW, CIA अथवा KGB इतना सामर्थ्यवान होता है कि हर शामिल होने वाले व्यक्ति की पूरी जानकारी प्राप्त कर पाए। हाँ उस व्यक्ति की बुराई पता चलने के बाद संगठन की उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया होती है, यही संगठन का चरित्र होता है। अगर उस पर तुरंत कारवाई की जाए, उसे संगठन से निष्कासित किया जाए तो इसका अर्थ होता है कि संगठन ने उस व्यक्ति से असहमति जताई है। संगठन का उन कार्यों में कोई संलिप्तता नहीं है। लेकिन अगर संगठन इन बातों के बावजूद भी उस व्यक्ति के साथ खड़ा हो तो उस संगठन का चरित्र भी उसी व्यक्ति की भाँति होता है।
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आप और हम विरोध एवं समर्थन कर सकते हैं और हमें करना भी चाहिए लेकिन अंधविरोध या अंधभक्ति ठीक नहीं है। आप हमारा विरोध करें , एक मुद्दे पर। मैं आपका विरोध करूँ, एक मुद्दे पर। हम दोनों संभव स्पष्टीकरण दें। तथ्य सामने रखें, तथ्य के पीछे का तर्क दें। यही सामाजिक प्रक्रिया है। व्यक्तिगत कुंठाओं को मिथ्या आरोपों में परिवर्तित कर अनावश्यक रूप से दुष्प्रचार करना, यह एक विश्वासघात है स्वयं से, आपका अनुशरण करने वाली जनता से और यह एक घनघोर असामाजिक कृत्य भी है।
जब आप किसी उद्देश्य को साथ लेकर, व्यक्तिगत सहूलियतों को त्यज, सामाजिक भँवर में उतरते हुए सामाजिक संगठन का निर्माण करते हैं अथवा हिस्सा बनते हैं। तब आप एक उदाहरण बनते हैं पूरे समाज के लिए। आपसे लोगों को आशाएँ होती हैं जिनकी पूर्ति हेतु आपने कितना परिश्रम किया इसके लिए नहीं वरन् आप सफल हो पाए इसके लिए लोग आपकी प्रशंसा करते हैं। लोग आपपर आश्रित होते हैं कि आप उनके व्याधियों में उनके साथ रहें और इन सब के परिणामस्वरूप आपकी एक छवि बन जाती है। लोग आपकी प्रशंसा करते हैं, आपका मनोबल बढ़ाते हैं। एक बड़ा जनसमूह आपका अनुशरण करता है। और यह सब हो पाता है अत्यधिक परिश्रम के फलस्वरूप ही हो पाता है। अतः व्यक्तिगत कुंठाओं की पूर्ती, व्यक्तिगत आक्षेपों पर असभ्य प्रतिक्रिया, आपका कोई भी बदले की भावना से लिया जाने वाला आपके लिए आत्मघाती सिद्ध होता है। इस प्रकार सारा परिश्रम मिट्टी में मिल जाता है। जो आपपर मिथ्या आरोप लगा रहे आप उनके प्रति नहीं वरन् समाज एवं जनता के प्रति जवाबदेह हैं। इसलिए आपपर लगे आरोपों का आप स्पष्टीकरण दें और फिर अपने कार्य में लग जाएँ। इस प्रकार एक समय आएगा दुष्प्रचार पर आपका ध्यान भी नहीं जाएगा और आप बहुत आगे बढ़ चुके होंगे। और आरोप लगाने वाले खीझते रहेंगे। लेकिन वहीं अगर आप भी उन आरोपों का मुँहतोड़ जवाब देने की प्रक्रिया में असभ्यता पर उतरेंगे तो समाज आपको नकार देगा। और यह एक अटल सत्य है कि बिना समाज के समर्थन एवं संरक्षण के आप सामाजिक कार्य नहीं कर सकते हैं। समाज आपका है, आप समाज के हैं।
जब आप किसी उद्देश्य को साथ लेकर, व्यक्तिगत सहूलियतों को त्यज, सामाजिक भँवर में उतरते हुए सामाजिक संगठन का निर्माण करते हैं अथवा हिस्सा बनते हैं। तब आप एक उदाहरण बनते हैं पूरे समाज के लिए। आपसे लोगों को आशाएँ होती हैं जिनकी पूर्ति हेतु आपने कितना परिश्रम किया इसके लिए नहीं वरन् आप सफल हो पाए इसके लिए लोग आपकी प्रशंसा करते हैं। लोग आपपर आश्रित होते हैं कि आप उनके व्याधियों में उनके साथ रहें और इन सब के परिणामस्वरूप आपकी एक छवि बन जाती है। लोग आपकी प्रशंसा करते हैं, आपका मनोबल बढ़ाते हैं। एक बड़ा जनसमूह आपका अनुशरण करता है। और यह सब हो पाता है अत्यधिक परिश्रम के फलस्वरूप ही हो पाता है। अतः व्यक्तिगत कुंठाओं की पूर्ती, व्यक्तिगत आक्षेपों पर असभ्य प्रतिक्रिया, आपका कोई भी बदले की भावना से लिया जाने वाला आपके लिए आत्मघाती सिद्ध होता है। इस प्रकार सारा परिश्रम मिट्टी में मिल जाता है। जो आपपर मिथ्या आरोप लगा रहे आप उनके प्रति नहीं वरन् समाज एवं जनता के प्रति जवाबदेह हैं। इसलिए आपपर लगे आरोपों का आप स्पष्टीकरण दें और फिर अपने कार्य में लग जाएँ। इस प्रकार एक समय आएगा दुष्प्रचार पर आपका ध्यान भी नहीं जाएगा और आप बहुत आगे बढ़ चुके होंगे। और आरोप लगाने वाले खीझते रहेंगे। लेकिन वहीं अगर आप भी उन आरोपों का मुँहतोड़ जवाब देने की प्रक्रिया में असभ्यता पर उतरेंगे तो समाज आपको नकार देगा। और यह एक अटल सत्य है कि बिना समाज के समर्थन एवं संरक्षण के आप सामाजिक कार्य नहीं कर सकते हैं। समाज आपका है, आप समाज के हैं।
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