चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-एक


                           [भाग-एक]
हे भाग्यशनि,

              तुम्हारी दिव्यता को प्रणाम (मजबूरी में)। आशा है कि तुमने करवा-चौथ का व्रत नहीं रखा होगा। और हे कलखुसरी से शरीर की स्वामिनी, तुम कोई भी व्रत रखना भी मत। चूँकि मेरी माँ पहले ही बहुत सारे खरजितिया का व्रत कर चुकी है तो मैं सौ साल तक के करार पर हूँ। आगे क्या बताऊँ। बस खोज में हूँ, उस इंसान की, जो कहता था कि सिंगल ही बहुत अच्छे हो। चरण छू लेने का मन करता है उनके। उस समय तो लगता था कि खामख्वाह में भाषण दे रहे हैं लेकिन सच कह रहे थे। मैं भी अपने से छोटों को यही सलाह देता हूँ और यह भी जानता हूँ कि वह भी मेरी इस सलाह को भाषणबाजी समझ रहे होंगे। सोचता था कि किसी से प्यार होगा, साथ बैठकर पूरी रात चाँद निहारेंगे, रोज बगीचे में बैठकर ढ़ेर सारी बातें करेंगे, तुम्हारी पलकों पर कविताएँ लिखूँगा, तुम्हारी बाँहों के आलिंगन में शामें गुजारूँगा, तुम्हारी जुल्फों की आड़ में छिपा रहूँगा, तुम्हारी गोद में सिर रखकर कर तुम्हारा चेहरा निहारूँगा, तुम मेरी नाबालिग दाढ़ी में अपनी अँगुलियों से अठखेलियाँ करोगी, मेरे गीत के बोलों को अपने होठों के सुंदर तरंग दोगी। और हो क्या रहा है! दिन-भर में दस-पंद्रह मैसेज का आदान-प्रदान, बमुश्किल से दो मिनट फोन पर झगड़ा। मिलना तो असंभव ही है। रोज झगड़े करता हूँ, तुमसे या खुद से पता नहीं। गुस्सा भी होता हूँ या शायद खिन्न हो जाता हूँ। कुलमिलाकर अगर द कपिल शर्मा शो के रिंकू भाभी की जुबान में कहें, "हमरा जिनगी बर्बाद हो गिया।" अब ऐसा है कि तुम्हारा एक 'Hii' आता है तो मेरा 'Hello' से शुरू हो कर 'कैसी हो?' , 'क्या कर रही हो?' , 'अरे यार रिप्लाई क्यों नहीं दे रही हो!' , 'जब समय नहीं रहता है तो मैसेज ही क्यों करती हो?' , तक पहुँच जाता है फिर नेट ऑफ और किताबें ऑन। दिमाग में तब हैंजन्सबर्ग भी नहीं आ पाते हैं और न ही स्क्रोडिंजर। फिर दो तीन घंटे बाद तुम्हारा रिप्लाई आता है कि फलाँ दीदी, चिलाँ मौसी, भलाँ मामी आ गई थी या फिर उनका फोन आ गया था। मैं मजबूर हूँ और तुम भी मजबूर हो। सामने होती तो तुम्हें भटासकर अपनी भड़ास भी निकाल लेता लेकिन वह भी मुमकिन नहीं है। परिवार की नजरें और दैनिक भागदौड़ के बीच एक लड़की के लिए समय निकाल पाना कितना कठिन है यह मैं समझता हूँ। लेकिन फिर भी कभी-कभी सब्र जबाब दे देता है। फिर बात नहीं करने का निर्णय, इस आशा पर कि तुम तो फोन करोगी ही। कभी गुस्सा, कभी प्यार, कभी खिन्नता, कभी उकताहट, कभी आँसू यही तो इश्क के जायके हैं।
                                         ....क्रमशः
                                By:- शिवेश आनन्द

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