उम्मीद

                     उम्मीद

                   लड़का मॉल में अपने काम की दो-तीन जींस बटोर कर शर्ट के स्टॉर की तरफ जा ही रहा था कि उसे परफ्यूम के स्टॉल पर बहुत ही जाना-पहचाना और सबसे पसंंदीदा चेहरा दिखा। क्षणभर को उसे लगा कि यह उसका भ्रम है लेकिन जल्दी ही ऐहसास हो गया कि सच में वही चेहरा है और वही लड़की है। अभी वह उधेड़बुन में ही था जाकर मिले या न मिले। कभी सोचता कि जाकर हालचाल पूछ आऊँ फिर सोचे कि क्यों व्यर्थ ही दिमाग खपाऊँ। इसी सोचने के दौरान लड़की की नजर पड़ गई। वह तो पहले की ही तरह बेधड़क थी बिना कुछ सोचे आ गई। उसे आते हुए देखकर लड़के ने मन में कहा, "बेड़ा गर्क।"
"तुम यहाँ! कैसे हो?", लड़की ने आते ही कहा।
"हाँ मैं यहाँ। कोई दिक्कत है क्या मेरे यहाँ होने से!", लड़के ने अनमना सा जबाब दिया।
"मुझे क्यों दिक्कत होने लगी! यूँ ही पूछ दिया यार। ये बताओ कैसे हो?"
"शर्ट लेने आया हूँ। तुम कैसी हो?", लड़के ने हमेशा की तरह "कैसे हो" वाला सवाल टाल दिया।
"मैं भी परफ्यूम लेने आई हूँ।", इस बार लड़की ने भी टाल दिया।
"सवाल टाल देती है!"
"तुमसे ही सीखा है।", लड़की ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया।
"दूल्हे-राजा कैसे हैं? साथ में नहीं आए!"
"अच्छे ही हैं। ऑफिस में होंगे इसीलिए नहीं आए।"
"हाँ। कभी जिसे साथ रहने का मन था उसे लाइसेंस नहीं था और अब जिसे लाइसेंस है उसे साथ रहने का मन नहीं है।", लड़के ने चुटकी ली।
"भक्क पागल!", कहकर लड़की ने हल्की सी डाँट लगाई।

                    दोनों करीब छह सालों के बाद एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। कॉफी के बहाने कुछ पल फुरसत के निकालकर दोनों बैठे। क्योंकि इन छह सालों में दोनों बेतरतीब भागे थे, एक-दूसरे से दूर, लड़का अपने कामों में भागा जा रहा था, लड़की अपने वैवाहिक जीवन में।
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"तब। और क्या सब चल रहा है?", लड़की ने फिर से थमी बातचीत आगे बढ़ाई।
"वही। काम-काम और काम। उसी काम के सिलसिले में तो तुम्हारे शहर आने की बेअदबी की।", लड़के ने फिर छेड़ा।
"अच्छा! मेरा शहर!", लड़की ने मुँह घुमाते हुए जबाब दिया।
लड़के ने सिर हिलाते हुए पूछा, "तुम्हारा क्या चल रहा है?"
"वही शादी, रसोई, सास-ससुर और पति।", लड़की ने फीकी मुस्कुराहट के साथ जबाब दिया।
लड़के ने भी जबाब में होठों पर वही फीकी मुस्कान लाई। और थोड़ी देर तक दोनों चुप रहे।
"तब। शादी-वादी कब कर रहे हो? बुलाना जरूर।", लड़की ने दुबारा बातों के खत्म होते सिलसिले को सुलगाया।
"अभी तो नहीं ही। और शायद आगे भी कभी नहीं।", लड़के ने गहरी साँस लेकर जबाब दिया।
"क्यों!", वह भवेँ ऊँची करते करते हुए बोली।
"सीधे खारिज ही कर देती हो न! माना कि अभी कुछ नहीं है हमारे बीच लेकिन कभी कुछ था इससे इंकार मत करो।", लड़का खिन्न होकर बोला।
"मैं कुछ भी खारिज नहीं कर रही हूँ। अच्छी तरह याद है मुझे भी सब कुछ लेकिन मैंने भी शादी कर ली न! तुम यादों के भरोसे ही रहोगे?",
"यहाँ लड़कियाँ इतनी भी आजाद नहीं हुई हैं कि घर में कह सके कि शादी नहीं करनी है। अगर ऐसा होता तो तुम जरूर रूक जाती।", लड़के ने आँखों को छुपाते हुए जबाब दिया।
"तो क्या अगला जन्म दूसरे देश में लेना है! जहाँ लड़कियों और लड़कों को शादी-ब्याह में आजादी हो?", अपनी भावुकता रोकते हुए बोली।
"ना। जन्म तो यहीं लेना है। इसी देश में। एक खामी के चलते इतनी सारी खूबियाँ नकार तो नहीं सकते हैं न! और शायद तब तक मुश्किलें कम हो जाएँ।

    उम्मीद है कि ये मंजर बदलेंगे, नजारे बदलेंगे,
  इस जन्म में न सही तो अगले में साथ रह लेंगे।"

                                     © शिवेश आनन्द

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