ओल ने अंग्रेज को ओला

#पिताजी_के_पिटारे_से

                      ओल ने अंग्रेज को ओला

              मेरे सबसे बड़े चाचाजी खादी ग्रामोद्योग, पूसा रोड में ऑडिटर के पद कार्यरत थे। विदेशी संस्थाओं की भी सहकारिता के कारण संस्थान में विदेशियों के भ्रमण होता ही रहता था। एक बार एक अंग्रेज आए हुए थे और संयोग से अतिथिगृह की मरम्मत का कार्य का जारी था। जिस कारण उनका रहना चाचाजी के आवास पर ही हुआ। एक दिन की बात है चाचाजी सवेरे ही संस्था के लिए रवाना हो गए। अंग्रेज महाशय आराम से आठ बजे आदतन उठे और नित्यकर्मों को निपटा कर फ्रिज खोला तो उसमें उन्हें लाल रंग के कुछ गोल-मटोल फल दिखाई पड़े। महाशय ने एक बड़ा वाला उठाया और धो-काटकर चबाने लगे।
         
खेत में लगे ओल के पौधे


               [Note- ओलना शब्द का प्रयोग जमकर कूटना, लतियाना, जूतियाना, बेल्टे बेल्ट मारना इत्यादि अर्थों में किया जाता है]               बेचारे गरीब अंग्रेज जिसे कोई मीठा फल समझ रहे थे वह था ओल (जिमीकंद, गाजा, Elephant Foot, सूरन) जिसके स्पर्श हो जाने से भी बहुत ही तीव्र खुजली होने लगती है। इसके भी दो प्रकार होते हैं एक हमारी तरफ बिहार में पाया जाने वाला देशी ओल और दूसरा दक्षिण भारत वाला ओल जिसे मद्रासी ओल कहा जाता है।मद्रासी ओल से तो बहुत थोड़ी सी ही खुजली होती है लेकिन देशी ओल तो उच्च कोटि की खुजली एवं जलन के  लिए विख्यात है। मेरी माँ
ओल का फल

इसे टुकड़ों में काटकर (काटते समय भी हाथ पॉलीथिन में लपेट कर काटती है कि जिससे कच्चे ओल का संपर्क त्वचा से नहीं हो) नींबू और नमक मिलाकर धूप में रखती है और फिर जाकर उसकी
सब्जी बनाती है। तत्पश्चात भी मुँह में कबकबाहट (कुनकुनाहट) का अनुभव होता है। उस अंग्रेज महाशय ने तो दुर्वासा के आशीषप्राप्त ओल के अखंड कुमार स्वरूप का सेवन कर लिया था। अब तो खुजलाहट मुँह से शुरू होते हुए गले, पेट, अंतड़ियों से होकर गुदामार्ग तक पहुँच गई। बेचारे रोस्टर में पड़े मकई के लावे की तरह उछल रहे थे। नौकर बेचारा दौड़ा-दौड़ा चाचाजी को बुला लाया कि अंग्रेज को मिर्गी आ गई है। बेचारे डॉक्टर के पास ले जाए गए उनको बवासीर उखड़ गई थी। दो दिनों में सामान्य हुए और फिर अधूरा इंटर्न छोड़कर ही भागे सात समंदर पार। इस तरह ओल ने दो शताब्दी की परतंत्रता का प्रतिशोध ले लिया था।
   
                                       #पिताजी_के_पिटारे_से
                                           27/08/2019
                                          By:- शिवेश आनन्द

Comments

  1. वाह ओल की एक अनूठी व्याख्या पढ़ने को मिली। वाह शिवेश वाह।

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