समीक्षा: ऐसी वैसी औरत
[ अंकिता जैन ]
समीक्षा:
'ऐसी वैसी औरत ' हर उस आभासी आयाम को परिभाषित करती है, जहाँ औरतों और ' केवल औरतों ' को दोषी ठहराया जाता गया है। समाज के कुछ थोथे से पैमाने होते हैं, जो तथाकथित सभ्य समाज के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जिनके आधार पर किसी को सही या फिर गलत ठहराया जाता है। यह पैमाना औरतों के लिए विशेष रूप से ज्यादा ही निष्ठुर हो जाता है।
'ऐसी वैसी औरत ' हर उस आभासी आयाम को परिभाषित करती है, जहाँ औरतों और ' केवल औरतों ' को दोषी ठहराया जाता गया है। समाज के कुछ थोथे से पैमाने होते हैं, जो तथाकथित सभ्य समाज के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जिनके आधार पर किसी को सही या फिर गलत ठहराया जाता है। यह पैमाना औरतों के लिए विशेष रूप से ज्यादा ही निष्ठुर हो जाता है।
![]() |
PC- google; writer Ankita Jain |
यह किताब उन्हीं पैमानों के आधार घृणित औरतों के अलग-अलग वर्गों को उकेरती है। चाहे एक अधेर विधवा 'मालिन भौजी' का पुनर्विवाह हो अथवा ससुराल से परित्यक्त एवं मायके में तिरस्कृत 'रज्जो' हो, चाहे घर पर निर्दयी पिता के डर से भागी दलाल के हत्थे चढ़ वेश्यावृत्ति में उतरने को मजबूर हुई 'इरम' हो अथवा समलैंगिक होने के चलते उपहास एवं घृणा का पात्र बनी 'शैली' हो, चाहे श्वसुर की वासना एवं पति के नशे तथा निकम्मेपन का दंश झेलती 'मीरा' हो अथवा नाकाबिल पति से शादी तथा धुर्त प्रेमी के कारण बैचलर्स पार्टी के मनोरंजन की वस्तु बनी 'सना' हो, चाहे अप्रवासी पति की बेवफाई का शिकार 'काकू' हो अथवा संवेदनाशून्य आधे हिस्से लिए जन्मी 'जुबी' की पूर्ण स्त्री बनने की चाहत हो, चाहे अपने माँ के कुकृत्य से दिल एवं दिमाग पर हुए गहरे आघात से तड़पती पीहू हो अथवा रिश्ते के भाई के द्वारा मर्म स्थल को छू कर मानसिक तथा शारीरिक उत्पीड़न की शिकार 'शिखा' हो। हर कहानी तथा किरदार का सजीव चित्रण किया है लेखिका ने। इस किताब में रचे गए सारे किरदार आपको, अपने आसपास नजर डालने भर से ही मिलने शुरू हो जाएंगे।
कहानियाँ ऐसी डूबने वाली हैं कि आप किताब की समीक्षा कर ही नहीं सकते, कहाँ शाब्दिक अशुद्धियां हैं, कहाँ वर्तनियों की अशुद्धियां हैं। समीक्षा वहाँ संभव है जहाँ तर्कशक्ति काम करे, यहाँ तो आपकी भावनाओं के उद्वेलन की चपेट में आपकी सारी तर्कशक्ति शून्य हो जाएगी। ऐसी किताबें बस पढ़ते ही रहने का जी चाहता है।
By:- शिवेश आनन्द
Comments
Post a Comment