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उम्मीद

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                      ◆ उम्मीद ◆                    लड़का मॉल में अपने काम की दो-तीन जींस बटोर कर शर्ट के स्टॉर की तरफ जा ही रहा था कि उसे परफ्यूम के स्टॉल पर बहुत ही जाना-पहचाना और सबसे पसंंदीदा चेहरा दिखा। क्षणभर को उसे लगा कि यह उसका भ्रम है लेकिन जल्दी ही ऐहसास हो गया कि सच में वही चेहरा है और वही लड़की है। अभी वह उधेड़बुन में ही था जाकर मिले या न मिले। कभी सोचता कि जाकर हालचाल पूछ आऊँ फिर सोचे कि क्यों व्यर्थ ही दिमाग खपाऊँ। इसी सोचने के दौरान लड़की की नजर पड़ गई। वह तो पहले की ही तरह बेधड़क थी बिना कुछ सोचे आ गई। उसे आते हुए देखकर लड़के ने मन में कहा, "बेड़ा गर्क।" "तुम यहाँ! कैसे हो?", लड़की ने आते ही कहा। "हाँ मैं यहाँ। कोई दिक्कत है क्या मेरे यहाँ होने से!", लड़के ने अनमना सा जबाब दिया। "मुझे क्यों दिक्कत होने लगी! यूँ ही पूछ दिया यार। ये बताओ कैसे हो?" "शर्ट लेने आया हूँ। तुम कैसी हो?", लड़के ने हमेशा की तरह "कैसे हो" वाला सवाल टाल दिया। "मैं भी परफ्यूम लेने आई हूँ।", इस बार लड़की ने भी टाल दिया। "सवाल टा

चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-दो

#चिट्ठी_तुम्हारे_लिए                           [भाग-दो] हे भाग्यशनि!                     जेठ की दुपहरी में, शीतल शरबत के समान, ढेर सारे प्यार के साथ यह दूसरी चिट्ठी लिख रहा हूँ। अब लगता है कि सालों पहले ही अंतिम बार बातें हुई थी। समय का कुछ अंदाजा ही नहीं है कि कितने मुद्दतों पहले शुरू हुई बातें कितने अरसों पहले ही खत्म हो गईं। हाँ वाकया सारा का सारा याद है, अक्षरशः। क्योंकि खत्म तो बातें हुई थी, रिश्ते इतनी भी जल्दी खत्म नहीं हो सकते। बातों की बातें चली हैं तो बताता चलूँ कि तुम जो शिकायतें किया करती थी कि मैं मिलता क्यों नहीं हूँ तो मैं कहा करता था न कि समाज की पाबंदी है। लेकिन अब तो इस कोरोना के चलते पुलिस के डंडे, बीमारी का डर और तबाही का अंदेशा भी है। प्रेम को पूजने वाले इस देश में प्रेम करना तो सभी चाहते हैं लेकिन करने देना कोई नहीं चाहता है। सुना है कि तुम्हारी शादी की भी बात चल रही है! अब झूठ हो या सच। लेकिन एक बात तो है कि हिन्दुस्तानी लड़कियों के नामुराद बापों को शादियों से इतनी ज्यादा रफाकत होती है जैसे किसी धान का बोझा उठाए मजदूर को उसे गंतव्य पर उतार फेंकने से होती ह

बदन पे सितारे लपेटे हुए

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#बातें_गीतों_की गीत:- बदन पे सितारे लपेटे हुए , गीतकार:- हसरत जयपुरी उर्फ इकबाल अहमद, संगीतकार:- शंकर-जयकिशन, गायक:- मोहम्मद रफी, फिल्म:- प्रिंस (1969) अभिनय:- शमशेर राज कपूर एवं वैजयंतीमाला,              विज्ञान एवं मानव तो सितारों के ईर्दगिर्द भी नहीं पहुँच सके हैं किन्तु एक कवि ही उन सितारों को, अपनी स्याही में घोलकर, वस्त्रों में मोतियों की भाँति जड़ कर नायिका को पहना सकते हैं। हसरत साहब इस गीत से प्रिंस फिल्म में वही कारनामा कर दिखाया। जिसमें उनका साथ निभाने में शंकर-जयकिशन, रफी साहब और शम्मी साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जहाँ राजकुमार शमशेर (शम्मी कपूर), राजकुमारी अमृता (वैजयंतीमाला) को, अपने जन्मदिवस पर आयोजित पार्टी में गाते हुए रिझाने का प्रयास करते है।               "बदन पे सितारे लपेटे हुए,        ओ जान-ए-तमन्ना किधर जा रही हो!          जरा पास आओ तो चैन आ जाए,           जरा पास आओ तो चैन आ जाए।" P.c.- youtube गीत शुरू होने से ठीक पहले राजकुमार, राजकुमारी को नृत्य निवेदन करते हुए, जिस तरह गर्दन झटकते हैं, मुझे अकस्मात ही देव आनन्द स

ये जो मोहब्बत है

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#बातें_गीतों_की गीत:- ये जो मोहब्बत है गीतकार:- आनन्द बक्शी संगीतकार:- राहुल देव बर्मन  उर्फ  पंचम दा गायक:- किशोर कुमार फिल्म:- कटी पतंग (1971) अभिनय:- राजेश खन्ना              आनन्द बक्शीजी और पंचम दा दोनों ने करीब सौ गानों में प्राण फूँके हैं। उन्हीं रत्नों में से एक है "ये जो मोहब्बत है"। 'कटी पतंग' का यह गीत तब फिल्माया गया है जब कमल (राजेश खन्ना) की होने वाली दुल्हन मधु (आशा पारेख), शादी की ही रात अपने घर को छोड़ जाती है। बेचारा कमल के प्रेम में निराश होकर, सुरा के मद में गाता है। P.c.- youtube   "ये जो मोहब्बत है! ये उनका है काम,  अ रे! महबूब का जो लेते हुए नाम, मर जाएँ, मिट जाएँ, हो जाएँ बदनाम। रहने दो! छोड़ो! जाने भी दो यार। हम न करेंगे प्यार।" P.c.- wikipedia अगर हाल-फिलहाल में आपके दिल भी दिल के चिथड़े हुए हैं तो आपको कमल से सामीप्य का अनुभव होगा। यूँ तो साहित्य एवं कला की सफलता ही इसी में है कि पाठक, श्रोता अथवा दर्शक इससे स्वतः ही जुड़ जाएँ, जिसमें बक्शीजी, पंचम दा और किशोर दा ने लेशमात्र भी कटौती

चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-एक

#चिट्ठी_तुम्हारे_लिए                            [भाग-एक] हे भाग्यशनि,               तुम्हारी दिव्यता को प्रणाम (मजबूरी में)। आशा है कि तुमने करवा-चौथ का व्रत नहीं रखा होगा। और हे कलखुसरी से शरीर की स्वामिनी, तुम कोई भी व्रत रखना भी मत। चूँकि मेरी माँ पहले ही बहुत सारे खरजितिया का व्रत कर चुकी है तो मैं सौ साल तक के करार पर हूँ। आगे क्या बताऊँ। बस खोज में हूँ, उस इंसान की, जो कहता था कि सिंगल ही बहुत अच्छे हो। चरण छू लेने का मन करता है उनके। उस समय तो लगता था कि खामख्वाह में भाषण दे रहे हैं लेकिन सच कह रहे थे। मैं भी अपने से छोटों को यही सलाह देता हूँ और यह भी जानता हूँ कि वह भी मेरी इस सलाह को भाषणबाजी समझ रहे होंगे। सोचता था कि किसी से प्यार होगा, साथ बैठकर पूरी रात चाँद निहारेंगे, रोज बगीचे में बैठकर ढ़ेर सारी बातें करेंगे, तुम्हारी पलकों पर कविताएँ लिखूँगा, तुम्हारी बाँहों के आलिंगन में शामें गुजारूँगा, तुम्हारी जुल्फों की आड़ में छिपा रहूँगा, तुम्हारी गोद में सिर रखकर कर तुम्हारा चेहरा निहारूँगा, तुम मेरी नाबालिग दाढ़ी में अपनी अँगुलियों से अठखेलियाँ करोगी, मेरे गीत के बोलों

भारत के बहादुर लाल "शास्त्रीजी"

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   भारत के बहादुर लाल "शास्त्रीजी"                       दो अक्तूबर का दिन भारत के इतिहास के अतिविशिष्ट गौरवशाली दिनों में से एक है। इस दिन ही आधुनिक भारत के इतिहास एवं राजनीति के दो अमूल्य रत्नों का जन्म हुआ था, महात्मा गांधी तथा लाल बहादुर शास्त्रीजी। कुछ लोग अच्छा भी कहते हैं वहीं कुछ लोग बुरा भी कहते हैं। बुरा बोलने वाले की गिरेबान पकड़ने वाले भी बहुत आ जाते हैं। और तो और जिस पार्टी के प्रमुख नेता एवं अधिकतर कार्यकर्ता प्रबल विरोध करते हैं, उस पार्टी के सुप्रीमो एवं राष्ट्रीय प्रतिनिधियों को भी न चाहते हुए भी शीश नवाना पड़ता है। इस तरह अपनी हत्या के सात दशक बाद भी गांधीजी प्रासंगिक हैं। वहीं आधुनिक भारत के आर्थिक सुधार की नींव रखने वाले शास्त्रीजी अपने आकस्मिक मृत्यु/प्रायोजित हत्या या रहस्यमयी देहांत के पाँच दशकों में ही प्रसंग में भी नहीं हैं। Pc:- Amar Ujala   ★अधिकारिक जीवनी ( संक्षेप में ):                    02 अक्टूबर 1904 को, अपने नाना के घर, मुगलसराय में जन्मे शास्त्रीजी अपने माता-पिता श्रीमती रामदुलारी देवी एवं श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव की द्वितीय स

माता-शिवेश संवाद

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#माता_शिवेश_संवाद             आज कलशस्थापन के बाद प्रसाद खाकर, चढ़ा हुआ पान चबाते हुए द्वार पर टहल रहा था कि धरती से बीस फीट की ऊँचाई पर माँ दुर्गा अपनी प्रथमावतार माँ शैलपुत्री के साथ गुजरती दिखी। मैं दोनों को आवाज लगाया और प्रणाम किया। दोनों ने आशीष दिया। फिर माँ दुर्गा ने पूछा,  "और सुनाओ बाबू क्या सब चल रहा है?" मैंने बताया, "भोर से उठापटक शुरू हो गई थी घर की लिपाई की गई, बारिश कुछ ज्यादा ही जोर है तो आँगन की लिपाई स्थगित कर दी गई। आज से प्याज-लहसुन बंद है, सेंधा नमक चालू है।"      "अरे मेरे बच्चे को इतनी परेशानी हो रही है। बड़े अफसोस की बात है।" माता शैलपुत्री ने चुटकी ली।      "परेशानी लहसुन-प्याज के बिना होती तो है लेकिन खाने में नहीं बल्कि खाना बनाने में और चूँकि घर पर खाना तो दीदी बनाती हैं तो इस मामले में कोई विशेष दिक्कत नहीं है। बात रही सेंधा नमक की तो डॉक्टर साहब भोपाल वाले भी लिखते हैं कि प्राकृतिक नमक ही सर्वश्रेष्ठ है। तो इट्स कूल।" मैंने कहा।  [Pc-google] तब तक दोनों नीचे आ गई थीं मैं दौड़कर दो कुर्सी ले आया तो उन्होंन