मधुश्रावणी


#किस्से_छुटपन_के
                          मधुश्रावणी

नवविवाहित युगल के लिए मनाया जाने वाला यह त्योहार विशेष रूप से ब्राह्मण एवं कायस्थ में प्रचलित है। इसे नवविवाहित दुल्हनें अपने मायके में मनाती हैं। हमलोगों के यहाँ इसे मनाया तो नहीं जाता है लेकिन हमलोग इसके भुक्तभोगी जरूर होते हैं । दुल्हनें अपनी सहेलियों और छोटी बहनों के साथ गाँव में घूम-घूम कर फूल इकठ्ठा करती हैं। मेरी माँ और चाची


भगवान को चढ़ाए गए प्रसाद की फोटो


 सहित अधिकांश महिलाओं को यह बात असह्य है कि कोई उनके संतान से थोड़े ही कम प्रिय, फूलों के पौधों पर अत्याचार करे। चूँकि वे लड़कियाँ फूल तोड़ती ही नहीं बल्कि नोंच लेती हैं तो उजाड़िन कही जाती हैं। जब हम नैना-भुटका (बच्चे) हुआ करते थे तो माँ और चाची हमें दरवाजे पर तैनात कर देती थी। मेरे सभी सहपाठियों की कमोबेश यही स्थिति थी कि विद्यालय से लौटे तो खाना खिलाकर दरवाजे तैनात करवा दिया। इस हिदायत के साथ कि सुरक्षा व्यवस्था छोड़कर अगर खेलने भागे तो रात का खाना गया। 

पूजन सामाग्रियों की सजावट


                 लड़के तीन तरह के होते हैं एक जो लड़कियों को देखते ही लाजवंती की भाँति मुरझा जाते हैं, दूसरे वे जो लड़कियों को देखते ही तीन-तेरह-तेईस जुगाड़ने लगते हैं और तीसरे वे होते हैं जिनके दिमाग में कोई तीन-पाँच नहीं होता है। पहले दोनों श्रेणी के लड़के, लड़कियों से बिना चूँ-पटाक किये बिना उनकी बात मान लेते हैं लेकिन तीसरे वाले को हर बिल में अपनी चोंच घुसेड़ने की आदत होती है। जहाँ मौका मिला झगड़ लिए। मैं इन्हीं में से था।



चढ़ाए गए फूलों की सजावट

                 फूल-उजाड़िनों में ज्यादातर सहपाठिनें ही होती थीं। पंद्रह बीस के झुंडों में विचरण करती थीं। जिधर जो फूल-पत्तियाँ दिखीं सिसोह लेती थीं। लेकिन मैं डटा रहता था और किसी को अंदर आने नहीं देता था कि बगीचा नोचें। लेकिन कुछ तीन-तेरह-तेईस वाले लफरसोंटों के लिए यह अच्छा अवसर होता था। जमकर नजरों की खीर-पूरी-तरकारी पकाते थे। उजाड़िनों को चाहिए था फूल और बदले एक दो मुस्कान दे देना घाटे का सौदा नहीं था और हाँ इससे उन लफरसोंटों की सेंटिंग हो जाती थी ऐसी बात नहीं थी। मुस्कान का सिलसिला बस फूल नोचते समय ही होता था विद्यालय में नहीं। और मधुश्रावणी समाप्त होने के बाद तो देखती भी नहीं थी। इस तरह इन्हें प्रेयसी तो मिल नहीं पाती थी और बगिया उजड़वा देने के अपराध में इन्हें सोंटों की सौगात मिलती थी अलग से। और वही लफरसोंट सारे आजकल फेसबुक पर स्टेटस डाले फिर रहे हैं, "स्टैण्डर्ड की बात मत कर पगली, मैंने अभी भी एम्मा स्टोन का फ्रेंड रिक्वेस्ट पेंडिंग रखी है।"

[Note:- स्वस्थ हास्य हेतु, धार्मिक एवं जातिगत अवमानना से दूर]


                                      #किस्से_छुटपन_के
                                      By:- शिवेश आनन्द
                           

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