प्राईवेसी
★प्राईवेसी★
यूँ तो पटना आए दो साल से अधिक समय हो गया है लेकिन फिर भी पटना बहुत अधिक घूमा नहीं हूँ। क्योंकि शहर घूमने में मुझे जरा सा भी मन नहीं लगता है, हाँ अगर गाँव चला गया तो पूरा दिन घूमते ही रहता हूँ।
मेरा एक दोस्त SSC की एक परीक्षा देने के लिए पटना आया हुआ था। उसका सेंटर कुम्हरार में था और चूँकि पटना में वह नया था तो मैं भी साथ में गया था। वह जब परीक्षा देने चला गया तो मैंने सोचा कि बीच के समय में किसी पार्क में जाकर बिताऊँ। बगल में ही कुम्हरार पार्क था जिसके बारे में मैंने पढ़ा था कि वहाँ धनवन्तरि के औषधालय के अवशेष हैं तो मैं टिकट लेकर अंदर घुस गया। अंदर जाकर देखा कि पार्क में पेड़ तो काफी हैं लेकिन देखने में ही वह वीरान लग रहा था। औषधालय के अवशेष भी थे परन्तु संरक्षण के अभाव में जीर्णशीर्ण हो चुके थे। थोड़ी सी नजरें घुमाई तो वहाँ जामुन के पेड़ दिख गए। बस फिर क्या था मन मचलने लगा। आसपास तोड़ने का कोई जुगाड़ नहीं दिखा तो अपना जूता निकाला और जूतों को ही फेंक-फेंक कर तोड़ने लगा। मुश्किल से दस-पंद्रह जामुन खाये होंगे कि एक
यूँ तो पटना आए दो साल से अधिक समय हो गया है लेकिन फिर भी पटना बहुत अधिक घूमा नहीं हूँ। क्योंकि शहर घूमने में मुझे जरा सा भी मन नहीं लगता है, हाँ अगर गाँव चला गया तो पूरा दिन घूमते ही रहता हूँ।
मेरा एक दोस्त SSC की एक परीक्षा देने के लिए पटना आया हुआ था। उसका सेंटर कुम्हरार में था और चूँकि पटना में वह नया था तो मैं भी साथ में गया था। वह जब परीक्षा देने चला गया तो मैंने सोचा कि बीच के समय में किसी पार्क में जाकर बिताऊँ। बगल में ही कुम्हरार पार्क था जिसके बारे में मैंने पढ़ा था कि वहाँ धनवन्तरि के औषधालय के अवशेष हैं तो मैं टिकट लेकर अंदर घुस गया। अंदर जाकर देखा कि पार्क में पेड़ तो काफी हैं लेकिन देखने में ही वह वीरान लग रहा था। औषधालय के अवशेष भी थे परन्तु संरक्षण के अभाव में जीर्णशीर्ण हो चुके थे। थोड़ी सी नजरें घुमाई तो वहाँ जामुन के पेड़ दिख गए। बस फिर क्या था मन मचलने लगा। आसपास तोड़ने का कोई जुगाड़ नहीं दिखा तो अपना जूता निकाला और जूतों को ही फेंक-फेंक कर तोड़ने लगा। मुश्किल से दस-पंद्रह जामुन खाये होंगे कि एक
![]() |
कुम्हरार पार्क, पटना |
लड़की उसी पेड़ की आड़ से हड़बड़ी में बड़बड़ाती हुई बाहर आई, "ब्लडी क्रीप्स, डिजगस्टिंग पीपल्स"।
मैं ठहरा गाँव का भोला-भाला सा लड़का। शहर के रहन-सहन से नितांत अपरिचित एवं अप्रभावित। समझ नहीं पाया कि मैंने इन महाशया का क्या बिगाड़ा कि मुँह बना बनाकर बकती हुई जा रही थी। अब तो मुझे भी तैश आ गया। मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया और कारण पूछा। तो बोली "तुमलोग स्पेस नहीं दे सकते हो न किसी को। जरा सी प्राईवेसी नहीं देखी जाती है।"
मैंने कहा कि यह पार्क अधिकारिक तौर पर सार्वजनिक जगह है। वैसे मैंने प्राईवेसी कैसे भंग कर डाली पूछने पर कुछ नहीं बोली तुनक कर जाने लगी। उस पार्क में कुत्ते भी ढ़ेर सारे घूम रहे थे। एक ने महाशया का दुपट्टा खींचा और ले भागा। चूँकि अबतक महाशया मेरी जामुन वाली हरकत देखकर अच्छे से जान चुकी होगी कि मैं गाँव का हूँ तो उसने मदद माँगी। मैंने फिर जूता निकाला। एक जूता खींचकर महाशया को मारने का मन किया लेकिन उन्हें नहीं मारा। जूता कुत्ते की पीठ पर रसीद किया और फिर कुत्ता दुपट्टा छोड़कर भाग गया। फिर महाशया ने अपना दुपट्टा उठा कर थैंक्स कहा। तो मैंने कहा पहले सॉरी बोलो। तो सॉरी के साथ थैंक्स बोलकर गई। लेकिन मैं तो सोच में ही रह गया प्राईवेसी कैसी टूटी। तब जाकर मैं पार्क के प्रेक्षण के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह पार्क तो पिया-मिलन पार्क है। सब लगे हुए हैं पेड़ के पीछ, जलाशय के पास, झाड़ियों में हर जगह। कुछ एक तो बीच मैदान में भी लगे हुए थे। तब मेरी समझ में आया कि भला यह प्राईवेसी नाम की चिड़िया क्योंकर भंग हुई होगी।
मैं ठहरा गाँव का भोला-भाला सा लड़का। शहर के रहन-सहन से नितांत अपरिचित एवं अप्रभावित। समझ नहीं पाया कि मैंने इन महाशया का क्या बिगाड़ा कि मुँह बना बनाकर बकती हुई जा रही थी। अब तो मुझे भी तैश आ गया। मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया और कारण पूछा। तो बोली "तुमलोग स्पेस नहीं दे सकते हो न किसी को। जरा सी प्राईवेसी नहीं देखी जाती है।"
मैंने कहा कि यह पार्क अधिकारिक तौर पर सार्वजनिक जगह है। वैसे मैंने प्राईवेसी कैसे भंग कर डाली पूछने पर कुछ नहीं बोली तुनक कर जाने लगी। उस पार्क में कुत्ते भी ढ़ेर सारे घूम रहे थे। एक ने महाशया का दुपट्टा खींचा और ले भागा। चूँकि अबतक महाशया मेरी जामुन वाली हरकत देखकर अच्छे से जान चुकी होगी कि मैं गाँव का हूँ तो उसने मदद माँगी। मैंने फिर जूता निकाला। एक जूता खींचकर महाशया को मारने का मन किया लेकिन उन्हें नहीं मारा। जूता कुत्ते की पीठ पर रसीद किया और फिर कुत्ता दुपट्टा छोड़कर भाग गया। फिर महाशया ने अपना दुपट्टा उठा कर थैंक्स कहा। तो मैंने कहा पहले सॉरी बोलो। तो सॉरी के साथ थैंक्स बोलकर गई। लेकिन मैं तो सोच में ही रह गया प्राईवेसी कैसी टूटी। तब जाकर मैं पार्क के प्रेक्षण के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह पार्क तो पिया-मिलन पार्क है। सब लगे हुए हैं पेड़ के पीछ, जलाशय के पास, झाड़ियों में हर जगह। कुछ एक तो बीच मैदान में भी लगे हुए थे। तब मेरी समझ में आया कि भला यह प्राईवेसी नाम की चिड़िया क्योंकर भंग हुई होगी।
Comments
Post a Comment