ख्वाबों में मुलाकातें



                     ख्वाब में मुलाकातें

        आज पता नहीं कैसे पर दो लोगों से अचानक मुलाकात हो गई।
        एक तो अजय देवगन से जो सड़क किनारे यूं ही खड़े थे थोड़ी बहुत हाय हेल्लो हुई, फिर मैंने पूछ दिया कि इधर कैसे तो उन्होंने कहा कि पटना में खुद के कुछ पुकारकेन्द्र (कॉल सेंटर) हैं। शनिवार को चला आता हूँ हिसाब किताब करने।
      और दूसरी उनसे भी भयंकर हस्ती गुलजार साहब से। हमदोनों किसी रेस्तरां में बैठकर बातें कर रहे थे कि मेरी गरलफरेंड (I mean girlfriend) का फोन आ गया। मैंने बाद में बात करता हूँ कहकर फोन काट दिया। गुलजार साहब ने मुझे प्यारी सी डाँट लगा कर लगाकर कहा ममता और प्रेम को कभी भी इंतजार नहीं करवाना चाहिए। फिर उन्होंने अपनी मीठी तो नहीं परन्तु कर्णप्रिय आवाज में कुछ अपनी नज्में सुनाई। नज्में तो भूल गया पर उनके सुनाने का लहजा अपूर्व ही कहा जा सकता है, एकदम हाथों को चमकाते हुए, आवाज में उस शेर की नूर थी। मजा आ गया सच में, उनकी गजलें उन्हीं से सुनने को मिली। लेकिन एक और बात उन्होंने कही कि आप मुझे और अपने आप को अलग मत समझो। हमदोनों अदीबी ओहदा बराबर ही है, साहित्य में सभी एक समान होते हैं। जरिया होते हैं कलमकार, कुछ रूहानी ताकतें हमारी कलम के जरिए खुद को जहाँ में पेश करते हैं। पता नहीं कब हमारे जरिए कोई अच्छी रूह कुछ बेहतर कह डालती है और हम प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। शायद उनकी बातें ठीक ही हों, मुझे भी प्रयासरत रहना चाहिए। अभी उनसे बातें कर ही रहा था कि रूमपार्टनर ने रंग में भंग कर दिया, उसने फोन नहीं किया पर एक गिलास पानी मेरे मुँह पर मार दिया। मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा मेरा ना सही पर गुलजार साहब का लिहाज तो करते जरा सी भी तहजीब नहीं। रूमपार्टनर हँसते हँसते जमीन लोटने लगा तब माजरा समझ में आया कि मैं सपनों में घूम रहा था। वाह आज की शाम बन गई।
         अजय देवगन और गुलजार वाली बातें सच ना हो सकी कोई दिक्कत नहीं है पर वो फोन वाली बात भी स्वप्न होने की कसक है....। कर ही क्या सकते हैं।

                                       By:- शिवेश आनन्द



Comments

Popular posts from this blog

ओल ने अंग्रेज को ओला

लटकन फुदना - भाग-एक

बदन पे सितारे लपेटे हुए