चिट्ठी तुम्हारे लिए: भाग-एक
#चिट्ठी_तुम्हारे_लिए [भाग-एक] हे भाग्यशनि, तुम्हारी दिव्यता को प्रणाम (मजबूरी में)। आशा है कि तुमने करवा-चौथ का व्रत नहीं रखा होगा। और हे कलखुसरी से शरीर की स्वामिनी, तुम कोई भी व्रत रखना भी मत। चूँकि मेरी माँ पहले ही बहुत सारे खरजितिया का व्रत कर चुकी है तो मैं सौ साल तक के करार पर हूँ। आगे क्या बताऊँ। बस खोज में हूँ, उस इंसान की, जो कहता था कि सिंगल ही बहुत अच्छे हो। चरण छू लेने का मन करता है उनके। उस समय तो लगता था कि खामख्वाह में भाषण दे रहे हैं लेकिन सच कह रहे थे। मैं भी अपने से छोटों को यही सलाह देता हूँ और यह भी जानता हूँ कि वह भी मेरी इस सलाह को भाषणबाजी समझ रहे होंगे। सोचता था कि किसी से प्यार होगा, साथ बैठकर पूरी रात चाँद निहारेंगे, रोज बगीचे में बैठकर ढ़ेर सारी बातें करेंगे, तुम्हारी पलकों पर कविताएँ लिखूँगा, तुम्हारी बाँहों के आलिंगन म...